Sunday, September 9, 2012

आज़ाद ख्याल


जब उठता हूँ मैं चलने  को,
कुछ है जो रोकता है मेरे क़दमों को
यूँ लगता है जैसे पीछे छोड़े जा रहा हूँ
कुछ हिस्सा खुद का वहां,
शायद वही ख्याल, जिन्हें ज़िन्दगी देता हूँ मैं
रोकते हैं मुझे जाने से,
शायद डरते हैं
मेरी दी आजादी से.......

मगर रोकने से उनके मैं रुकता नहीं,
आगे बढ़ता हूँ, उस डर के आगे झुकता नहीं
डर का सामना आगे बढ़ कर करता हूँ
रूककर, मुड़कर उन्हें कमज़ोर नहीं करता,
आगे बढ़कर,
पंख लगा उड़ते उन ख्यालों को
और मजबूत करता हूँ.......

क्योंकि
जब वो ख्याल जिंदगी के पंख लगा उड़ते हैं,
जब वो आसमान की और बढ़ते हैं
तो अकेले वो नहीं उड़ते
मैं भी उड़ता हूँ संग उनके,
तब वो, सिर्फ वो नहीं बढ़ते
मैं भी बढ़ता हूँ संग उनके.......

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