Sunday, September 9, 2012

जिंदगी की संगीत तरंग

जिंदगी एक साज़ है
जिस पर एक धुन हर घडी,
हर पल चलती है,
जब यहाँ होता हूँ,
धुन वो तभी सुनती है,
हर पल में जिंदगी के  तार छिड़ते हैं
जैसे हर घडी में बादल कभी घुलते, कभी बढ़ते हैं
पर नज़र हो जब आसमान पर, दिखते वो तभी हैं
कुछ यूँ ही
अगर जिंदा हो, जिंदादिल हो,
जिंदगी के इस पल में, इस जहान में,
वो सुर लगते हुए, सुनते तभी हैं......

अगर बंधे हो किसी ख्याल में,
हो कहीं स्वर्गों में या पातळ में,
जिंदा नहीं,
बिना मौत, जिंदगी के ही मारे हो तुम,
तब न बादलों के रंग तुम्हारे लिए हैं,
न जिंदगी की वो संगीत तरंग तुम्हारे लिए है........

उन ख्यालों को जिंदगी देना सीखो,
उन्हें आज़ाद कर, खुद को आज़ाद होता देखो,
अपनी लौ को और दीयों में बँटने दो
और खुद में बसती जिंदगी को ये जहाँ रोशन करते देखो,
बाँधोगे जिंदगी को जो खुद में तुम
तो अपने ही ख्यालों में, कैद हो जाओगे,
न बाँटोगे लौ जो अपनी,
अपनी ही आंच में पिघल जाओगे.........

उड़ने दो ख्वाबों को,
जिंदगी को बढ़ने दो......

होना या ना होना तुम्हारा
मर्ज़ी तुम्हारी नहीं,
कौन कहता है तुम हो मालिक
ये जिंदगी पूरी-पूरी तुम्हारी नहीं,
कुछ और है, जो ख्यालों के पार है,
जिसका ना इस दुनिया में कहीं कोई सार है.....
क्योंकि तुम हो, तो खुद के होने का शुकराना करो,
जिंदगी जहाँ उड़ने को आतुर है, उसे वहाँ रवाना करो......

न तुम वो हो, जो "था", न हो वो, जो "होगा",
तुम हो तो बस यहीं हो, वरना तुम नही हो,
जो तुम हो, तुम वही रहो
और जो हो ही नहीं, उसकी परवाह न करो.......

तुम हो तो बस यहीं हो, वरना नहीं हो
यही एक घडी है, यही एक पल है
जहाँ तुम हो,
और किसी समय, और किसी जगह, अगर हो
तो वो तुम नहीं हो......

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