Sunday, September 9, 2012

बादलों से झाँकती जिंदगी


ज़रूर बादलों में कहीं है छुपा

जिंदगी का कोई फलसफा,
ज़रूर खुद सा कुछ इसे है दिखता
जब सूरज के सामने से है कोई बादल गुज़रता
इसलिए शायद
मुस्कुरा देता हूँ मैं
खिल उठती है जिंदगी मुझमें
ख्वाबों को पंख लग जाते हैं
ओर चाहत है बढती आसमान की ओर, छूने, चूमने उसको.....
 जब देखता हूँ
बादलों को आसमान में टहलते हुए
कभी काले कभी सफ़ेद रंग में ढलते हुए
कभी सूरज की धूप को ढंकते हुए
कभी ऊपर, कभी नीचे से गुजरते हुए........

ज़रूर नीले इस आसमान की झील में
ये बहते बदल ठहरे पानी में चेहरे हैं
और मुझमें हंसती खिलखिलाती ये जिंदगी
उस आसमान को आइना है समझती.....

जिंदगी झाँकती है बादलों से......

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